श्रीमद भगवद गीता : ०२

योग परम्परा का पालन आदि काल से हो रहा है।

 

एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः।

स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप।।४-२।।

 

हे परंतप! इस प्रकार परम्परा से प्राप्त हुये इस योग को राजर्षियों ने जाना। परन्तु बहुत समय बीत जानेके कारण वह योग इस मनुष्यलोकमें प्राय लुप्त सा हो गया। ||४-२||

 

भावार्थ:

 

जो परिवार, समाज, राज्य,  देश मे मुख्य व्यक्ति हैं, उनके आचरण का अनुसरण ही अन्य व्यक्ति करते हैं। अतः सूर्य, मनु, इक्ष्वाकु आदि राजाओंने योग को भलीभाँति जानकर उसका स्वयं भी आचरण किया और प्रजासे भी वैसा ही आचरण करवाया।

परन्तु समय के साथ योग विधि का पालन करने मे त्रुटि आती चली गई और अब यह लुप्त हुआ ही जानो।

योग का लुप्त होना ही तो कारण है, जो धृतराष्ट्र पुत्र और पाण्डव पुत्र युद्ध के लिये खड़े हुए हैं।

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