भावार्थ:
जब-जब संसार में धर्म की हानि होती है, तब-तब परमात्मा का, अलग-अलग मनुष्य रूप (राम, परशुराम एवं कृष्ण) में जन्म होता है।
श्लोक के सन्दर्भ मे:
अतः मनुष्य का धर्म (कर्तव्य) है पृथ्वी (पृथ्वी के समस्त जीव, जन्तु, वनस्पति, खनिज एवम अन्य पदार्थ) का संरक्षण, वृद्धि और कल्याण के लिये उनकी सेवा करना।
मनुष्य के द्वारा किये जाने वाले सेवा रूपी कर्तव्य – पृथ्वी, देश, समाज, परिवार को समर्पित होने चाहिये। परन्तु जब मनुष्य को इस बात का विरोधाभास हो कि, प्राप्त परिस्थिति में उसका कर्तव्य किस के प्रति अधिक है, अथवा उसको किस को अधिक प्राथमिकता देनी है, तो उसका प्राथमिकता क्रम इस प्रकार है।
मनुष्य का कर्तव्य सर्व प्रथम पृथ्वी के प्रति है।
उसके उपरांत देश के प्रति,
तत्प्रश्चात समाज के प्रति,
परिवार के प्रति,
और सबसे अंत में स्वयं के प्रति
मनुष्य जिससे भी अपना सम्बन्ध मानता है वह परिवार है।
मनुष्य का स्वयं (शरीर) के प्रति जो कर्तव्य है वह शरीर के केवल निर्वाह मात्र का और स्वस्थ रखने का है। मनुष्य का अधिक से अधिक भोग की वस्तु को प्राप्त करना और उसमें आसक्त रहना, मन की कामना पूर्ति करना, शरीर के प्रति कर्तव्य नही हैं। प्राय: मनुष्य भोग/ कामनाओं में इतना डूबा रहता है कि वह शरीर के स्वास्थ्य, मन की स्वच्छता और बुद्धि की स्थिरता का भी ध्यान नहीं करता।
अतः मनुष्य के सभी कार्य अन्यों के लिये है, स्वयं के लिये तो केवल निर्वाह मात्र का है।
मनुष्य द्वारा धर्म का पालन करने का अर्थ है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने शुद्ध दैवी स्वरूप के अनुरूप आचरण करे, और उसका यह प्रयत्न होना चाहिये कि वह स्वस्वरूप की महत्ता बनाये रखे और पशुवत जीवन व्यतीत न करे। पशुवत जीवन है भोग व्रती का। इस प्रकार मनुष्य का अलग-अलग परिस्थिति मे आचरण किस प्रकार का हो और कर्तव्य क्या हो, इस का ज्ञान मनुष्य को वेदों के द्वारा होता है। यह वेद स्वयं श्रुति रूप में सनातन धर्म (परमात्मतत्व) से ही निकले है। यह वेद किसी अन्य मनुष्य के विचार नहीं है।
मनुष्य का किसी भी प्रकार का कोई भी अधिकार स्वयं के लिये इस संसार से नही है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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