भावार्थ:
अध्याय ४ श्लोक २४ से अध्याय ४ श्लोक ३० में बारह प्रकार के यज्ञों का वर्णन किया गया है। इनसे अन्यथा अनेक प्रकार के यज्ञों का विद्वानों ने वर्णन किया गया है। भगवान श्रीकृष्ण कहते है की विद्वानों के द्वारा कहे गये सभी यज्ञ सकाम फल देने वाले है। अर्थात कर्मों से बाँधने वाले है। अतः कर्मजन्य यज्ञ कोने से है इनको जान, और जान कर, तुम केवल परब्रहा परमात्मा को प्राप्त करने वाले यज्ञ करो। ऐसा करने से तुम कर्म बन्धन से मुक्त हो जाओगे।
इस श्लोक में ‘मोक्ष’ पद कर्म बन्धन से मुक्ति के लिये आया है। कर्म बन्धन से मुक्ति इस जीवन काल में ही संभव है और अकर्म करने से ही संभव है। जीवन उपरान्त अथवा जीवन के कार्य न करने से मोक्ष की प्राप्ति नहीं है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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