श्रीमद भगवद गीता : ३२

यज्ञ करने से मोक्ष की प्राप्ति है।

 

एवं बहुविधा यज्ञा वितता ब्रह्मणो मुखे।

कर्मजान्विद्धि तान्सर्वानेवं ज्ञात्वा विमोक्ष्यसे ।।४.३२।।

 

इस प्रकार और भी अनेक प्रकार के यज्ञ विद्वानों द्वारा विस्तार से कहे गये हैं। उन सब यज्ञोंको तू कर्मजन्य जान। इस प्रकार जानकर यज्ञ करनेसे तुम मोक्ष को प्राप्त हो जाओगे, कर्मबन्धन से मुक्त हो जाओगे। ||४-३२||

भावार्थ:

अध्याय ४ श्लोक २४ से  अध्याय ४ श्लोक ३० में बारह प्रकार के यज्ञों का वर्णन किया गया है। इनसे अन्यथा अनेक प्रकार के यज्ञों का विद्वानों ने वर्णन किया गया है। भगवान श्रीकृष्ण कहते है की विद्वानों के द्वारा कहे गये सभी यज्ञ सकाम फल देने वाले है। अर्थात कर्मों से बाँधने वाले है। अतः कर्मजन्य यज्ञ कोने से है इनको जान, और जान कर, तुम केवल परब्रहा परमात्मा को प्राप्त करने वाले यज्ञ करो। ऐसा करने से तुम कर्म बन्धन से मुक्त हो जाओगे।

इस श्लोक में ‘मोक्ष’ पद कर्म बन्धन से मुक्ति के लिये आया है। कर्म बन्धन से मुक्ति इस जीवन काल में ही संभव है और अकर्म करने से ही संभव है। जीवन उपरान्त अथवा जीवन के कार्य न करने से मोक्ष की प्राप्ति नहीं है।

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