श्रीमद भगवद गीता : ४२

ज्ञान के दुवारा संशय का निवारण से ही योग सिद्धि है।

 

तस्मादज्ञानसंभूतं हृत्स्थं ज्ञानासिनाऽऽत्मनः।

छित्त्वैनं संशयं योगमातिष्ठोत्तिष्ठ भारत ।।४.४२।।

 

इसलिये हे भरतवंशी अर्जुन! हृदयमें स्थित इस अज्ञानसे उत्पन्न अपने संशयका ज्ञानरूप तलवारसे छेदन करके योग में स्थित हो जा, (और युद्धके लिये) खड़ा हो जा। ||४-४२||

भावार्थ:

पूर्व श्लोक में कही बात को पुनः कहते हुए, भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को विवेक के द्वारा संशय का नाश करके, समता में स्थित होकर कर्तव्य-कर्म (युद्ध) करने की आज्ञा देते है।

अर्जुन युद्ध को पाप समझते थे (अध्याय १ श्लोक ३६ एवं अध्याय १ श्लोक ४५)। इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने पहले समता में स्थित होने के लिये कर्म तत्व का ज्ञान दिया और फिर तत्व ज्ञान देकर, युद्ध करने की आज्ञा देते है। कारण कि समता में स्थित होकर कार्य करने पर पाप नहीं लगता।

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