श्रीमद भगवद गीता : ०२

विज्ञान को जानने के पश्चात कुछ जानने योग्य (ज्ञातव्य) शेष नहीं रह जाता है।

 

ज्ञानं तेऽहं सविज्ञानमिदं वक्ष्याम्यशेषतः।

यज्ज्ञात्वा नेह भूयोऽन्यज्ज्ञातव्यमवशिष्यते।।७-२।।

 

मैं तुम्हारे लिए विज्ञान सहित इस ज्ञान को सम्पूर्णतासे कहूँगा, जिसको जाननेके बाद फिर यहाँ और कुछ जानने योग्य (ज्ञातव्य) शेष नहीं रह जाता है। ।।७-२।।

भावार्थ:

प्रकृति क्या है? प्रकृति का मूल तत्व क्या है, इसका प्रभव तथा प्रलय का कारण क्या है? इन सबका ज्ञान – जो विज्ञानं है इसको मैं तुम सम्पूर्णतासे कहूँगा, ऐसा वचन भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को इस श्लोक में देते है।

योग स्थित योगी इस विज्ञान को जिस प्रकार जनता है, उसका वर्णन करने का वचन भगवान श्रीकृष्ण पूर्व श्लोक में देते है। कारण की इस प्रकार का विज्ञान प्राप्त होने से साधक को योग साधना में सरलता आती है। इस प्रकार का उपायपूर्वक प्रयत्न करना अध्याय ६ श्लोक ३६ में हुआ है।

इस श्लोक से स्पष्ट होता है की योग अभ्यास में विज्ञान को प्राप्त करने से साधना में सरलता आती है। इस विज्ञान को प्राप्त कर योग साधना करना सांख्य योग कहा जा सकता है।

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