भावार्थ:
अपरा प्रकृति में हो रही क्रिया और परा प्रकृति से प्राप्त ऊर्जा स्रोत से ही सम्पूर्ण प्राणी उत्पन्न होते हैं। अतः समस्त प्राणीओं के प्रभव तथा प्रलय का कारण परा प्रकृति (परमात्मतत्व) ही है।
जितने भी मनुष्य, पशु, पक्षी आदि जङ्गम और वृक्ष, लता, घास आदि स्थावर प्राणी हैं वे सब-के-सब अपरा और परा प्रकृतिके सम्बन्धसे ही उत्पन्न होते हैं।
मनुष्य, पशु, पक्षी आदि जङ्गम प्राणी में प्रभव स्त्री-पुरुष के सम्भोग करने पर रज-वीर्य के संयोग से होता है। जङ्गम प्राणी में यह काम वासना प्रकृति से प्राप्त है, और यह क्रिया स्वतः ही होती है।
यहा अहं (मैं) पद का सन्दर्भ परमात्मतत्व से है ना कि भगवान कृष्ण रूप से।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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