भावार्थ:
सृष्टि में जितने भी प्राणी-पदार्थों है, उन सबका कुछ न कुछ गुण है। वह प्राणी-पदार्थों उन गुणों के कारण ही जानने में आते है। प्राणी-पदार्थों के वह सब गुण परमात्मतत्व से प्राप्त है।
किस प्राणी-पदार्थ का क्या गुण है, इस का वर्णन इस श्लोक से श्लोक ११ तक हुआ है।
पुनः यहाँ यह बात जननी है की “मैं” पद का अर्थ परमात्मतत्व से है।
जल का जो द्रव्य रूप गुण है, उसका कारण परमात्मतत्व है। चन्द्रमा और सूर्य में जो विलक्षण शक्ति प्रभा (प्रकाश) है उसका कारण परमात्मतत्व है।
सूर्य में रासयनिक क्रिया होती है हो रही है। उस रासयनिक क्रिया से प्रकाश उत्त्पन्न होता है। वह प्रकाश कई करोड़ दूर पृथ्वी तक आता है। यह सब क्रिया का मूल तत्व कारण परमात्मतत्व है।
आकाश में जो ध्वनि है और उसका मूल शब्दः घोष (ओंकार) है। उस ओंकार का कारण परमात्मतत्व है।
मनुष्य में जो ज्ञानिन्द्रियाँ, कर्मेन्द्रियाँ, मन और बुद्धि की सहायता से जो कार्य करनी की शक्ति है उसको यहाँ पुरुषार्थ कहा गया है और उस पुरुषार्थ रूपी शक्ति का कारण परमात्मतत्व है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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