श्रीमद भगवद गीता : ०९

पृथ्वी-गन्ध; अग्नि-तेज; प्राणि-जीवनशक्ति; तपस्वियों-तपस्या मैं हूँ।

 

पुण्यो गन्धः पृथिव्यां च तेजश्चास्मि विभावसौ।

जीवनं सर्वभूतेषु तपश्चास्मि तपस्विषु।।७-९।।

 

पृथ्वी में पवित्र गन्ध मैं हूँ, और अग्नि में तेज मैं हूँ, तथा सम्पूर्ण प्राणियों में जीवनशक्ति मैं हूँ और तपस्वियों में तपस्या मैं हूँ। ।।७-९।।

भावार्थ:

पृथ्वी में जो पवित्र गन्ध है, उसका कारण परमात्मतत्व है। प्रकृति में अनेक प्रकार के पदार्थ है जिनमें एक विशिष्ट प्रकार की गन्ध होती है। उस विशिष्ट गन्ध का कारण परमात्मतत्व है।

सम्पूर्ण प्राणियों में एक जीवन शक्ति है, प्राणशक्ति है, जिसको चेतनतत्त्व कहा गया है, उस चेतनतत्त्व का कारण परमात्मतत्व है।

मनुष्य में शारीरिक कष्ट सहने की जो शक्ति है, मन को नियमित-सयंमित करने की जो शक्ति है, उसको तप कहते है। वह तप रूपी शक्ति होने का जो कारण है वह परमात्मतत्व है।

PREVIOUS                                                                                                                                          NEXT

धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष

धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]

Read More

अध्याय