भावार्थ:
भजना: मनुष्य जब ‘मैं करता हूँ’ – इस प्रकार अहंकार का त्याग कर सभी क्रियाओं का श्रेय परमात्मा, परमात्मा कृपा, शक्ति को देता है तब इस प्रकार के विचार के साथ कार्य को करना, परमात्मा को भजना हैं। परमात्मा की भक्ति है।
इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण चार प्रकार के भक्तों का वर्णन करते है।
आर्त – प्राण-संकट आनेपर, शारीरिक बीमारी, वेदना होने पर, प्रतिकूल घटना घटने पर, मनुष्य जब उस संकट के निवारण हेतू परमात्मा को देखता है, पुकारता है, तब उस भक्त को आर्त भक्त कहते है।
जिज्ञासु – जिसमें अपने स्वरूप को, भगवत्तत्त्व को जानने की जोरदार इच्छा जाग्रत् हो जाती है। जो साधक शास्त्राध्ययन के द्वारा परमात्मतत्व को जानना चाहते हैं वे जिज्ञासु भक्त हैं।
अर्थार्थी – जो मनुष्य प्राकृतिक पदार्थ कि कामना तो करता है, परंतु उनको वह भागवत कृपा से सत कर्मो के द्वारा प्राप्त करता है और उस प्राप्त वस्तु का श्रेय परमात्मा को देता है। ऐसा भक्त अर्थार्थी भक्त हैं।
ज्ञानी – जो ज्ञानी संपूर्ण सृष्टि का कारण परमात्मतत्व तो मानता है और स्वयं को कर्ता नहीं मानता, वह तो भक्त हैं ही।
पूर्वश्लोक में ‘दुष्कृतिनः’ पदसे परमात्मा की भक्ति न करने-वाले मनुष्यों की बात आयी थी। अब यहाँ ‘सुकृतिनः’ पदसे परमात्मा की भक्ति करने-वाले मनुष्यों की बात कहते हैं।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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