श्रीमद भगवद गीता : २९

जरामरणमोक्षाय मामाश्रित्य यतन्ति ये।

ते ब्रह्म तद्विदुः कृत्स्नमध्यात्मं कर्म चाखिलम् ।।७-२९।।

 

 

जरा (वृद्धावस्था) और मरण (मृत्यु) के भय से मोक्ष पानेके लिये जो मेरा आश्रय लेकर प्रयत्न करते हैं, वे उस ब्रह्मको, सम्पूर्ण अध्यात्मको और सम्पूर्ण कर्मको भी जान जाते हैं। ।।७-२९।।

 

भावार्थ:

पूर्व श्लोक में वर्णित कार्य (भजन) करने का प्रयोजन है जरा (वृद्धावस्था) और मरण (मृत्यु) के भय से मुक्ति पाना। अध्याय ७ श्लोक २७ में वर्णित मनुष्य, में जो स्वयं की सुरक्षा के लिये जो स्वाभाविक प्रवृत्ति है, वह वहा तक तो ठीक है। परन्तु मूढ़ता वश शरीर से सम्बन्ध मान कर मनुष्य जो शरीर की वृद्धावस्था और होने वाली मृत्यु से भय कर लेता है, वह अत्यंत ही कष्ट दायक है।

अतः भगवान श्री कृष्ण कहते है की जो साधक परमात्मा का आश्रय लेता है अर्थात् योग आरूढ़ होता है वह वृद्धावस्था और मृत्यु के भय से मुक्ति पता है।

साथ ही –  वे सम्पूर्ण अध्यात्मको जान जाते हैं अर्थात् जीव तत्त्वसे क्या हैं, गुण क्या है और वे सम्पूर्ण कर्मोंके वास्तविक तत्त्वको जान जाते हैं अर्थात् जीव में हो रहीं क्रिया का कारण तत्व क्या है, उसको जान जाते है।

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