श्रीमद भगवद गीता : २३

अध्याय १ श्लोक २३

 

योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्र समागताः।
धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षवः ।।१-२३।।

 

दुर्बुद्धि धृतराष्ट्र के पुत्रों का युद्ध में प्रिय करने की इच्छा वाले जो ये राजालोग इस सेना में एकत्र हुए हैं, उन युद्ध करने को उतावले हुए, सबको मैं देख तो लूँ। ||१-२३||

 

भावार्थ:

अध्याय १ श्लोक २३ अर्जुन ने कहा:

दुर्बुद्धि धृतराष्ट्र के पुत्रों ने हमारा नाश करनेके लिये आजतक कई तरहके षड्यन्त्र रचे हैं। धर्म और न्यायपूर्वक हम आधे राज्यके अधिकारी हैं, परन्तु पूर्ण राज्य की इच्छा से स्वयं तो मृत्यु ले लिये खड़े ही है और अपने साथ अपने अन्य प्रियजनों को भी मरने के लिये यहां एकत्रित किया।

वास्तवमें तो प्रियजनों का कर्तव्य होता है कि वे अपने मित्र को धर्म का पालन करने की प्रेरणा दे जिससे मित्र का कल्याण हो। परन्तु ये राजालोग दुर्योधनकी दुर्बुद्धि को शुद्ध न करके स्वयं का भी पतन करने के लिये अधर्म के लिये किये जाने वाले युद्ध में आ खड़े हुये है।

 

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