भावार्थ:
अध्याय १ श्लोक २४
‘एवमुक्तः‘ – जो आसक्ति रहित, विषय-भोगोंका दास नहीं होता।
‘गुडाकेश‘ – जो निद्रा-आलस्यके सुखका दास नहीं होता।
‘हृषीकेशः‘ – जो मन, बुद्धि, इन्द्रियाँ आदि सबके स्वामी हैं, जो मन, इन्द्रियों के वश न होकर उनको आज्ञा देनेवाले हैं। हृषीकेश भगवान श्री कृष्ण के सम्बोधन मे हुआ हैं। यहा इसका महत्व यह है कि, जो आज्ञा देने वाला है वह अर्जुन की आज्ञा का पालन करते हुये रथ को युद्ध में दोनों सेनाओं के मध्य मे स्थित करदेते है।
भगवान श्री कृष्ण, अर्जुन के पूर्व श्लोक का समर्थन करते हुये कहते है – “हे पार्थ यहाँ एकत्र हुये कौरवों को देखो”।
साथ ही प्रियजन के सन्दर्भ में अपना समर्थन देते हुये रथ को पितामह भीष्म और आचार्य द्रोण के समुख खड़ा कर मानो कह रहे हो – पितामह भीष्म और आचार्य द्रोण के लिये तो तुम अति प्रिय हो, परन्तु यह महापुरष भी अधर्म का साथ देते हुए तुम्हारे विरुद्ध खड़े है।
भगवान श्री कृष्ण का – “कौरवों को देखो” कहने का तात्पर्य है की, जब अधर्म की अधिकता हो जाती है तो धर्म ही स्थापना के लिये अपने सम्बन्धिओं के विरुद्ध भी युद्ध करना पड़ता है। कुरुवंशियों में क्योकि तुम (पाण्डव) लोग धर्म के साथ हो, इस लिये मैं तुम लोगों के साथ हूँ।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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