भावार्थ:
अध्याय १ श्लोक ३१ अर्जुन कहते है कि:
जिस प्रकार के भाव मेरे मन में उत्तपन्न हो रहे है, उनके लक्षण को देखु तो यह यद्ध का परिणाम हमारे लिये और संसारमात्रके लिये हितकारक नहीं दीखता।
युद्ध में स्वजनोंको मारनेसे हमे कोई लाभ होगा ऐसा मुझे नहीं दिखता। इस युद्धके परिणाम स्वरूप लोक और परलोक-दोनों ही हितकारक नहीं दीखते। कारण कि स्वयं कुलका नाश करने से हमे अथाह दुःख का सामना करना होगा और कुलका नाश करने से पाप वश हमे नरकोंकी प्राप्ति होगी।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
Read MoreTo give feedback write to info@standupbharat.in
Copyright © standupbharat 2024 | Copyright © Bhagavad Geeta – Jan Kalyan Stotr 2024