भावार्थ:
अध्याय १ श्लोक ३३- अर्जुन कहते है:
हमारे राज्य के सुःख में तो यह सब सम्बन्धी भी हमारे सहभागी है! परन्तु यह तो प्राणों की आशा का त्याग करके हमारे विरुद्ध युद्ध में खड़े हो गए है।
अगर हमरा उदेश्य राज्य प्राप्त कर उसका सुःख भोगने का है, तो उस सुःख में हमारे सम्बन्धी तो जीवित नहीं रहेगे! क्योंकि इस युद्ध में अगर हम जीतते है तो इन सब की मृत्यु निश्चित है।
श्लोक के सन्दर्भ मे:
इस श्लोक में भी अर्जुन के शूरवीरता और आत्मविश्वास का प्रदर्शन होता है। कारण की अत्यन्त करुणा से भरे और विषादयुक्त होने पर भी वह अपने प्रति पक्ष के स्वजनों के मारे जाने की बात कहते है। साथ ही उनको यह समझ नहीं आता की यह सब सम्बन्धी हमारे विरुद्ध युद्ध के लिये खड़े ही क्यों है?
सनातन धर्म पालन हेतु:
मनुष्य की यह विचित्र मूढ़ता है कि वह कामना पूर्ति और भोग में इतना आसक्त हो जाता है कि वह स्वयं के जीवन को समाप्त करने के लिये भी तत्पर हो जाता है।
मनुष्य की इच्छा यह भी रहती है की उसके सुख और भोग के सहभागी उसके सम्बन्धी भी रहे।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
Read MoreTo give feedback write to info@standupbharat.in
Copyright © standupbharat 2024 | Copyright © Bhagavad Geeta – Jan Kalyan Stotr 2024