भावार्थ:
अध्याय १ श्लोक ४० – अर्जुन ने कहा:
जब से कुल आरम्भ हुआ है, तभीसे कुलके धर्म अर्थात् कुल की पवित्र परम्पराएँ, भी परम्परासे चलती आयी हैं। अर्थात् जन्म के समय से लेकर मृत्यु के समय तक सोलह प्रकार के संस्कार (धर्म) पालन करना कहा गया है जो मनुष्य का कल्याण करने वाले है। परन्तु युद्ध में जब कुल का क्षय हो जाता है, तब सदा से कुलके साथ रहने वाले धर्म-संस्कार भी नष्ट हो जाते हैं। कुल धर्म-संस्कार के नष्ट होने पर अधर्म (बचे हुए) सम्पूर्ण कुल को दबा लेता है अर्थात् सम्पूर्ण कुल में अधर्म छा जाता है।
सनातन धर्म पालन हेतु:
युद्ध में योग्य पुरुष (धर्म-संस्कार का ज्ञान रखने वाले) तो मारे जाते हैं, किन्तु बालक, स्त्रियाँ और पुरुष जो युद्ध के योग्य नहीं हैं, वे पीछे बच जाते हैं। तब पीछे बचे लोगों को अच्छी शिक्षा देने वाले, उनपर शासन करने वाले नहीं रहते और वे मन माना आचरण करने लग जाते हैं, अर्थात् उनको अधर्म दबा लेता है।
भारत वर्ष में यह साफ-साफ देखा जा सकता है कि १००० से १२०० वर्षो का जो युद्ध और गुलामी चली है उससे भारतवर्ष में सनातन धर्म का कितना क्षय हुआ है। आज भारत का सधारण नागरिक सनातन धर्म के संस्कारों से बहुत दूर जा चूका है और समाज में विषमता फहलती जा रही है।
परन्तु श्रीमद भागवत गीता एक ऐसा ग्रंथ है जिसके पाठन, निधिध्यासन से मनुष्य पुनः सनातन धर्म को पा सकता है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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