भावार्थ:
अध्याय १ श्लोक २३ अर्जुन ने कहा:
दुर्बुद्धि धृतराष्ट्र के पुत्रों ने हमारा नाश करनेके लिये आजतक कई तरहके षड्यन्त्र रचे हैं। धर्म और न्यायपूर्वक हम आधे राज्यके अधिकारी हैं, परन्तु पूर्ण राज्य की इच्छा से स्वयं तो मृत्यु ले लिये खड़े ही है और अपने साथ अपने अन्य प्रियजनों को भी मरने के लिये यहां एकत्रित किया।
वास्तवमें तो प्रियजनों का कर्तव्य होता है कि वे अपने मित्र को धर्म का पालन करने की प्रेरणा दे जिससे मित्र का कल्याण हो। परन्तु ये राजालोग दुर्योधनकी दुर्बुद्धि को शुद्ध न करके स्वयं का भी पतन करने के लिये अधर्म के लिये किये जाने वाले युद्ध में आ खड़े हुये है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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