भावार्थ:
अध्याय १ श्लोक ३ दुर्योधन कहते है:
आप को मारने के उद्देश्य को लेकर ही द्रुपद ने याज और उपयाज नामक ब्राह्मणों से यज्ञ करा जिस धृष्टद्युम्न को पैदा किया और जिसको आपने युद्ध कौशल की शिक्षा दी वही द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न आपके सामने प्रतिपक्षमें, सेनापतिके रूपमें खड़ा है।
यद्यपि दुर्योधन यहाँ द्रुपदपुत्र के स्थानपर धृष्टद्युम्न भी कह सकता था, तथापि द्रोणाचार्यके साथ द्रुपद जो वैर रखता था, उस वैरभावको याद दिलानेके लिये दुर्योधन यहाँ ‘द्रुपदपुत्रेण’ शब्दका प्रयोग कर भाव को उजागर करता है।
श्लोक के सन्दर्भ मे:
राजा द्रुपद की शिक्षा महर्षि भरद्वाज से प्राप्त हुई| शिक्षा प्राप्ति के समय ही उनकी मित्रता महर्षि भरद्वाज के पुत्र द्रोणाचार्य से हुई |
प्रारंभिक जीवन में द्रोणाचार्य निर्धनता का जीवन व्यतीत कर रहे थे और उस निर्धनता को दूर करने के लिये ने द्रोणाचार्य ने अपने बाल मित्र द्रुपद जो अब राजा था सहेता माँगी| परन्तु राजा द्रुपद ने ना केवल सहेता करने से इंकार कर दिया अपितु द्रोणाचार्य का अपमान करके राजमहल से निकाल दिया |
द्रोणाचार्य इस घटना को अपने अहम् के साथ जोड़ कर अपमानित महसूस करते है। धृतराष्ट्र और पाण्डव के पुत्रों से गुरु दक्षिणा में द्रोणाचार्य, द्रुपद से युद्ध कर आधा राज्य प्राप्त करते है। इस पर द्रुपद अपमानित हो प्रतिषोध वश द्रोणाचार्यका नाश करनेके लिये याज और उपयाज नामक ब्राह्मणोंसे यज्ञ कराते है, जिससे धृष्टद्युम्न और द्रौपदी पैदा होते है।
सनातन धर्म पालन हेतु:
अतः राजा द्रुपद ने अपने राजा धर्म, मित्र धर्म और मनुष्य धर्म का पालन ना करके अधर्म का काम किया| मनुष्य का कर्तव्य है कि वह समाज के अन्य अभावग्रस्त मनुष्यों की साहयता करे। मित्र जो एक सम्बन्धी है, उसकी साहयता करना मनुष्य का धर्म है। राजा का तो धर्म है ही, कि वह अपने नागरिकों की साहयता करे।
भगवान श्रीकृष्ण श्रीमद भागवत गीता में आगे कहते है कि मनुष्य में द्वेष भाव ही दुःख और बन्धन का मुख्य कारण है। द्वेष भाव रखने से मनुष्य अपने लिये, विषम परिस्थितिया उत्तपन्न करता जाता है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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