श्रीमद भगवद गीता : ३१

अध्याय १ श्लोक ३१

 

निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव।
न च श्रेयोऽनुपश्यामि हत्वा स्वजनमाहवे।।१-३१।।

 

हे केशव! मैं लक्षणों (शकुनों) को भी विपरीत ही देख रहा हूँ, और युद्ध में (आहवे) अपने स्वजनों को मारकर कोई कल्याण भी नहीं देखता हूँ। ||१-३१||

 

भावार्थ:

अध्याय १ श्लोक ३१ अर्जुन कहते है कि:

जिस प्रकार के भाव मेरे मन में उत्तपन्न हो रहे है, उनके लक्षण को देखु तो यह यद्ध का परिणाम हमारे लिये और संसारमात्रके लिये हितकारक नहीं दीखता।

युद्ध में स्वजनोंको मारनेसे हमे कोई लाभ होगा ऐसा मुझे नहीं दिखता। इस युद्धके परिणाम स्वरूप लोक और परलोक-दोनों ही हितकारक नहीं दीखते। कारण कि स्वयं कुलका नाश करने से हमे अथाह दुःख का सामना करना होगा और कुलका नाश करने से पाप वश हमे नरकोंकी प्राप्ति होगी।

 

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