श्रीमद भगवद गीता : ३२

अध्याय १ श्लोक ३२

 

न काङ्क्षे विजयं कृष्ण न च राज्यं सुखानि च।
किं नो राज्येन गोविन्द किं भोगैर्जीवितेन वा।।
१-३२।।

 

हे कृष्ण! मैं न तो विजय चाहता हूँ, न राज्य और न सुखों को ही चाहता हूँ। हे गोविन्द! हमलोगों को राज्य से अथवा भोगों से क्या लाभ? अथवा जीने से भी क्या प्रयोजन है? ||१-३२||

 

भावार्थ:

अध्याय १ श्लोक ३२ अर्जुन कहते है:

हे कृष्ण आप तो जानते ही है की हमे राज्य और उससे प्राप्त भोग की कामना नहीं है। फिर इस युद्ध में विजय प्राप्त कर बड़ा राज्य ही क्यों न मिल जाये, उसका क्या लाभ? अथवा स्वजनोंको मारने के दुःख के साथ राज्यके सुख को वर्षों तक भोगने का भी हमें क्या लाभ? अर्थात स्वजनों के मरने के दुःख के साथ जीने का भी क्या लाभ?

श्लोक के सन्दर्भ मे:

पांडव पुत्रों को राज्य का मोहो नहीं था। कुरुवंश होने के नाते उनका आधे राज्य पर राज्य करना शास्त्र वहित था, परन्तु जीवन निर्वह के लिये वह पांच गाँव लेकर भी सन्तुष्ट थे।

अर्जुन और अन्य पांडव भाईओं को राज्य और उससे प्राप्त भोग की कामना नहीं है, यह तो निश्चित है। परन्तु युद्ध कर विजय प्राप्त कर उनको क्या लाभ होगा, इस पर अर्जुन की अनिश्चता है। विजय प्राप्त कर राज्य का सुख भोग सकेंगे, यह तो समझ आता है, पर जब भोग की कामना ही नहीं है तो स्वजनों को क्यों मरना? यह अर्जुन समझ नहीं पाते है।

 

PREVIOUS                                                                                                                                          NEXT

धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष

धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]

Read More

अध्याय