भावार्थ:
अध्याय १ श्लोक ३७ – अर्जुन ने कहा:
हे माधव! इन कुटुम्बियोंके मरनेकी आशंकासे ही बड़ा दुःख हो रहा है, संताप हो रहा है, तो फिर क्रोध तथा लोभके वशीभूत होकर हम उनको मार दें तो कितना दुःख होगा! उनको मारकर हम कैसे सुखी होंगे?
अर्जुन के अन्त:करण मे सम्बन्धियों के प्रति ममताजनित मोह कि प्रबलता इतनी आधिक हो जाती कि अर्जुन को अपने बान्धव को मारनेका कार्य सर्वथा ही अयोग्य है, अनुचित लगता है।
श्लोक के सन्दर्भ मे:
मोहके प्रबल होनेसे मनुष्य का विवेक जाता रहता है। अतः अपने कर्तव्यका स्पष्ट भान नहीं होता। मोहके कारण अपने क्षत्रियोचित कर्तव्यकी तरफ अर्जुनकी दृष्टि ही नहीं जा रही है।
यहां यह समझना जरूरी है कि पाण्डव पुत्र क्रोध तथा लोभके कारण युद्ध के लिये स्वयं की इच्छा से नहीं आय थे, अपितु युद्ध के लिये उनको दुर्योधन के द्वारा बाध्य किया गया था।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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