भावार्थ:
अध्याय १ श्लोक ३८- अर्जुन ने कहा:
निसंदेह सत्ता और धन की लोभ-वृत्तिके कारण दुर्योधनादिकी विवेक-शक्ति लुप्त हो गयी है, जिससे वे यह देखने में असमर्थ है कि इस युद्ध के कारण सम्पूर्ण सामाजिक ढाँचे का कितना विनाश होने वाला है। अन्तःकरणमें लोभ छा जानेके कारण इनको राज्य-ही-राज्य दीख रहा है। युद्ध में अपने ही स्वजनों की हत्याओं की क्रूरता को भी वे समझ नहीं पा रहे है है। कुलका नाश करनेसे कितना भयंकर पाप होगा, वह इनको दीख ही नहीं रहा है।
श्लोक के सन्दर्भ मे:
अर्जुन के कथन से लगता है कि उन्होंने अपना विवेक खोया नहीं था और इस युद्ध के द्वारा होने वाले भावी सामाजिक विनाश को वह स्पष्ट देख रहे थे।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
Read MoreTo give feedback write to info@standupbharat.in
Copyright © standupbharat 2024 | Copyright © Bhagavad Geeta – Jan Kalyan Stotr 2024