श्रीमद भगवद गीता : ४०

अध्याय १ श्लोक ४०

 

कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्माः सनातनाः।

धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्नमधर्मोऽभिभवत्युत।।१-४०।।

 

कुल का क्षय होने पर सदा से चलते आये कुलधर्म नष्ट हो जाते हैं और धर्म का नाश होनेपर (बचे हुए) सम्पूर्ण कुल को अधर्म दबा लेता है। ||१- ४०||

 

भावार्थ:

अध्याय १ श्लोक ४० – अर्जुन ने कहा:

जब से कुल आरम्भ हुआ है, तभीसे कुलके धर्म अर्थात् कुल की पवित्र परम्पराएँ, भी परम्परासे चलती आयी हैं। अर्थात् जन्म के समय से लेकर मृत्यु के समय तक सोलह प्रकार के संस्कार (धर्म) पालन करना कहा गया है जो मनुष्य का कल्याण करने वाले है। परन्तु युद्ध में जब कुल का क्षय हो जाता है, तब सदा से कुलके साथ रहने वाले धर्म-संस्कार भी नष्ट हो जाते हैं। कुल धर्म-संस्कार के नष्ट होने पर अधर्म (बचे हुए) सम्पूर्ण कुल को दबा लेता है अर्थात् सम्पूर्ण कुल में अधर्म छा जाता है।

सनातन धर्म पालन हेतु:

युद्ध में योग्य पुरुष (धर्म-संस्कार का ज्ञान रखने वाले) तो मारे जाते हैं, किन्तु बालक, स्त्रियाँ और पुरुष जो युद्ध के योग्य नहीं हैं, वे पीछे बच जाते हैं। तब पीछे बचे लोगों को अच्छी शिक्षा देने वाले, उनपर शासन करने वाले नहीं रहते और वे मन माना आचरण करने लग जाते हैं, अर्थात् उनको अधर्म दबा लेता है।

भारत वर्ष में यह साफ-साफ देखा जा सकता है कि १००० से १२०० वर्षो का जो युद्ध और गुलामी चली है उससे भारतवर्ष में सनातन धर्म का कितना क्षय हुआ है। आज भारत का सधारण नागरिक सनातन धर्म के संस्कारों से बहुत दूर जा चूका है और समाज में विषमता फहलती जा रही है।

परन्तु श्रीमद भागवत गीता एक ऐसा ग्रंथ है जिसके पाठन, निधिध्यासन से मनुष्य पुनः सनातन धर्म को पा सकता है।

 

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