भावार्थ:
जैसा की पूर्व के श्लोकों में भी कहा गया है, मनुष्य के सभी कार्य उसके त्रिगुण और वर्ण (जो कार्य करने की क्षमता है) के प्रभाव से ही होते है। यह सिद्धांत नित्य रहने वाला सत्य है।
‘अव्ययम्’ पद – नित्य रहने वाला सत्य के अर्थ रूप में आया है।
भगवान श्रीकृष्ण कहते है कि, मनुष्य रूप में मेरे द्वारा जो भी संसारिक कार्य होते है, उन कार्यों के प्रति मुझमें “मैं कार्यो को करता हूँ”, इस प्रकार की अहंता नहीं रहती।
श्लोक के सन्दर्भ मे:
इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण कहते है कि मनुष्य उन कार्यों को करने के लिये प्रेरित होता है, जिन को करने के गुण उसमें विध्यमान होते है। कार्य करने की योग्यता मनुष्य को उसके स्वयं की प्रकृति (गुण) से प्राप्त होती है।
मनुष्य को मनुष्य के गुणों के आधार पर अगर विभाजित किया जाय, और यह देखा जाय कि किस मनुष्य में किस प्रकार का कार्य करने की योग्यता अथवा क्षमता है, तो मनुष्य को मुख्यता चार भागों में विभाजित किया जा सकता है। जिनको वर्ण कहते है। यह वर्ण किया है, यह वर्ण किन गुणों पर आधारित है – का विस्तार से वर्णन अध्याय १८ श्लोक ४१ में हुआ है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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