भावार्थ:
पूर्व श्लोक (अध्याय ४ श्लोक १३) में भगवान श्रीकृष्ण कहते है कि मुझ में कार्य करने की अहंता नहीं होती। कारण की मैं कार्य से अपना कोई सम्बन्ध नहीं मानता और न ही मुझको कर्म फल प्राप्ति की कोई कामना, न ही कर्म फल में प्रियता।
भगवान श्रीकृष्ण पुनः विशेष रूप से कहते है कि जो मनुष्य योग विधि के तत्व को जान लेता है और जान कर उसका पालन करता है, वह भी मेरे समान कर्मों से नहीं बँधता।
योग विधि तत्व है:
कार्य-शरीर से सम्बन्ध विच्छेद, कार्य के फल की कामना नहीं और प्राप्त फल का भोग नहीं।
कर्म से बंधने का कारण है:
कार्य-शरीर से सम्बन्ध मानने से उत्त्पन होने वाली अहंता। कामना पूर्ति को लेकर होने वाले सुख-दुःख। यह सुख-दुःख ही जीवन बंधन है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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