भावार्थ:
जो योगी पूर्ण रूप से आसक्ति रहित है। जो सभी विषमतओं और विकारों से मुक्त है। जिसकी बुद्धि तत्व ज्ञान में स्थित है। अर्थात जिसमें अहंता का पूर्णतया त्याग हो गया है। जिसमें संसार की कोई महत्ता नहीं रहे गई है, उस योगी के सभी कार्य यज्ञ के लिये होते है, और यज्ञ के लिये कार्य करने पर वह सभी कार्य परमात्मा में विलीन हो जाते हैं। अर्थात संसार से बांधने वाले नहीं होते। सुख-दुःख देने वाले नहीं होते।
अध्याय ४ श्लोक २२ में कर्म बन्धन से मुक्त योगी के गुणों का वर्णन हुआ है। अब इस श्लोक में कुछ ओर गुणों का वर्णन होता है और साथ ही भगवान श्रीकृष्ण यह स्पष्ट करते है कि मनुष्य के सभी कार्य यज्ञ के लिये होने चाहिये। भगवान श्रीकृष्ण ने ‘केवल’ पद से यज्ञ के लिये कार्य करने पर बल दिया है। निष्क्रिय रहने पर, यज्ञ के लिये कार्य न करने पर, परमात्मा की प्राप्ति नहीं होती।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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