श्रीमद भगवद गीता : ३५

तत्त्वज्ञान की अनुभूति होने पर मोह से मुक्ति और परमात्मा की प्राप्ति।

 

यज्ज्ञात्वा न पुनर्मोहमेवं यास्यसि पाण्डव।

येन भूतान्यशेषेण द्रक्ष्यस्यात्मन्यथो मयि।।४.३५।।

 

तत्त्वज्ञान का अनुभव करनेके बाद तुम पुन इस प्रकार मोहको नहीं प्राप्त होगे, और हे अर्जुन! जिसके के द्वारा तुम सम्पूर्ण प्राणियोंको निःशेषभावसे पहले अपनेमें और उसके बाद मुझ सच्चिदानन्दघन परमात्मा में देखोगे। ||४-३५||

भावार्थ:

भगवान श्रीकृष्ण को, अर्जुन के भाव को देख कर यह लगता है की, अर्जुन का जो अपने सम्बन्धियों के प्रति मोह है वह टूट नहीं रहा।  इसलिये वह तत्वज्ञान के द्वारा ब्रहा की अनुभूति लेने की प्रेणना देते है। श्रीकृष्ण कहते है कि ब्रहा का अनुभव होने पर तेरा मोह टूटेगा और तुम्हे सम्पूर्ण प्राणियों में एवम अपने में परमात्मतत्व ब्रहा का ही अनुभव होगा और उसके सिवाय कुछ भी शेष अनुभव नहीं होगा।

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