भावार्थ:
मनुष्य में किसी भी विषय को लेकर संशय होना स्वाभिविक है। विषय चाहे संसारिक हो या पारमार्थिक। जिस विषय के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं है, उस विषय में संशय पैदा नहीं होता और जिस विषय को पूरा जानते या समझते है, उस विषय में भी संशय नहीं रहता।
परन्तु जिस विषय में पूर्ण जानकारी नहीं होती, तब मनुष्य को संशय होता है। पारमार्थिक मार्ग पर चलते हुए साधक में संशय का उत्पन्न होना हानिकारक नहीं है, प्रत्युत संशय को बनाये रखना और उसे दूर करने की चेष्टा न करना हानिकारक है।
संशय दूर करने का उपाय है विवेक के द्वारा पूर्ण ज्ञान को प्राप्त करना। महापुरषों के विचारों में श्रद्धा रखना।
अतः भगवान श्री कृष्ण कहते है कि वह मनुष्य जिसके भीतर संशय रहने पर भी वह अपनी विवेकवती बुद्धि से संशय को दूर (पूर्ण ज्ञान प्राप्त) नहीं करता और न ही वह किसी महापुरष में श्रद्धा रख कर उनकी कथन का अनुसरण करता, तब उसका पतन हो जाता है और उसको कही (लोक-परलोक) में भी सुख प्राप्त नहीं होता।
अर्द्ध ज्ञान को अज्ञान कहते है, न कि ज्ञान का न होना। ज्ञान का न होना मूढ़ता है।
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