भावार्थ:
पूर्व श्लोक में कही बात को पुनः कहते हुए, भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को विवेक के द्वारा संशय का नाश करके, समता में स्थित होकर कर्तव्य-कर्म (युद्ध) करने की आज्ञा देते है।
अर्जुन युद्ध को पाप समझते थे (अध्याय १ श्लोक ३६ एवं अध्याय १ श्लोक ४५)। इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने पहले समता में स्थित होने के लिये कर्म तत्व का ज्ञान दिया और फिर तत्व ज्ञान देकर, युद्ध करने की आज्ञा देते है। कारण कि समता में स्थित होकर कार्य करने पर पाप नहीं लगता।
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