भावार्थ:
जो साधक धर्म का पूर्णतय पालन करते है; धर्म पालन ही जिनके जीवन का उदेश्य है, ऐसे साधकों के लिये यहाँ ‘साधूनाम्’ पद आया है।
‘दुष्कृताम्’ पद उन मनुष्यों के लिये आया है जो, कामना के अत्यधिक बढ़ने के कारण झूठ, कपट, छल, बेईमानी आदि दुर्गुण-दुराचारों में लगे हुए हैं, जो निरपराध, सद्गुण, सदाचारी, साधुओं पर अत्याचार और अहित किया करते हैं, जो प्रवृत्ति और निवृत्तिको नहीं जानते, भगवान् और वेद-शास्त्रोंका विरोध करना ही जिनका स्वभाव हो गया है।
भगवान का जो मनुष्य रूप में जन्म होता है, उस जन्म में भगवान द्वारा धर्म पूर्ण आचरण करने से धर्म की स्थापना होती है।
धर्म की पुनः स्थापना के लिये इस प्रकार अनन्त समय से अनेक जन्म होते रहे है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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