भावार्थ:
पूर्व श्लोक में जिस मोह को पार कर पाना दुस्तर (कठिन) कहा है, वह जिन मनुष्य के लिये कठिन है उसका वर्णन इस श्लोक में किया है।
‘दुष्कृतिनो मूढाः’ – मूढ़ मनुष्य जो नाशवान् परिवर्तनशील प्राप्त पदार्थोंमें ‘ममता’ रखते हैं और अप्राप्त पदार्थोंकी ‘कामना’ करते हैं। कामना पूरी होनेपर ‘लोभ’ और कामनाकी पूर्तिमें बाधा लगनेपर ‘क्रोध’ करते है। इस प्रकार जो शास्त्र-निषिद्ध विषयोंका सेवन करते हैं, ‘लोभ’ में फँसकर झूठ, कपट, विश्वासघात, बेईमानी आदि पाप करते हैं और ‘क्रोध’ के वशीभूत होकर द्वेष, वैर आदि दुर्भावपूर्वक हिंसा आदि पाप करते, हैं वे ‘दुष्कृती’ हैं।
‘नराधमाः’ जिसने मनुष्य धर्म पालन का त्याग कर दिया है, अर्थात पशु के समान आचरण करता है।
इस प्रकार का जो आसुरी भाव धारण किये रहते हैं उनका निश्चय ही माया विवेक हर लती है। आसुरी सम्पति वाले मनुष्य के लिये निश्चय ही मोह को पार कर पाना दुस्तर (कठिन) है और परमात्मा के शरण में जाना भी कठिन है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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