भावार्थ:
भौतिक कामना पूर्ति के लिये जब मनुष्य जिस किसी देवता में श्रद्धा रख कर उसकी भक्ति करता है, तब उसकी श्रद्धा उस देवता में स्थिर (दृढ़) हो जाती है।
देवता की भक्ति करने का अर्थ है कि कार्य की सिद्धि का श्रय देवता को देना, एवं अनेक प्रकार के उपाय एवं नियमों का पालन (जप, तप, अग्नि होत्र यज्ञ) करना।
यहाँ ‘मैं’ पद का अर्थ सृष्टि का सिद्धांत (धर्म) से है, जो परमात्मा से प्राप्त हुआ है।
देवता में श्रद्धा किस प्रकार स्थिर (दृढ़) हो जाती है, इसका वर्णन अगले श्लोक में हुआ है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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