भावार्थ:
इस श्लोक का यह अर्थ नहीं है कि योग साधना करना अत्यन्त कठिन है या इस विज्ञान को प्राप्त करना किसी विरले साधक का विषय है। अपितु इस श्लोक का अभिप्राय है जिस विज्ञान का वर्णन भगवान श्रीकृष्ण आगे के श्लोकों में करेंगे उसको प्राप्त करना अति दुर्लभ है। कारण की इसको बताने वाला बहुत कम लोग है। और भगवान श्रीकृष्ण स्वयं इस दुर्लभ ज्ञान को सरलता से अर्जुन को दे रहे है।
आज के समय में यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा की अधिकांश मनुष्य पशुओं के समान जीवन व्यतीत करते है। खाना-पीना और ऐश-आराम करना अपने जीवन का उदेश्य मानते है। मनुष्यों में स्पर्धा इस बात की रहती है कि, किस के पास भोग की अधिक से अधिक सामग्री है।
अतः सहस्रों मनुष्यों में से कोई एक योग के लिये साधना करता है। और जो करते है उनको परमात्मतत्व के विज्ञान की प्राप्ति नहीं होती। जिसको भगवान श्रीकृष्ण आगे के श्लोकों में सरलता से वर्णन करने का वचन देते है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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