श्रीमद भगवद गीता : ०४

यजन्ते सात्त्विका देवान्यक्षरक्षांसि राजसाः।

प्रेतान्भूतगणांश्चान्ये यजन्ते तामसा जनाः ।। १७-०४।।

 

 

सात्त्विक मनुष्य देवताओंका पूजन करते हैं, राजस मनुष्य यक्षों और राक्षसोंका और दूसरे जो तामस मनुष्य हैं, वे प्रेतों और भूतगणोंका पूजन करते हैं। ।। १७-०४।।

 

भावार्थ:

कामना के आश्रित सात्त्विक प्रधान मनुष्य देवताओं का पूजन करते हैं। देवी सम्पदा को प्राप्त के लिये देव पद आया है। परन्तु देवताओं का पूजन करने वाले मनुष्य में जब राजस अथवा तामस प्रधानता बढ़ती है तब उनकी श्रद्धा भी बदल जाती है।

कामना आश्रित, राजस मनुष्य यक्षों और राक्षसोंका पूजन करते हैं। यक्षोंमें धनके संग्रहकी मुख्यता होती है और राक्षसोंमें दूसरोंका नाश करनेकी मुख्यता होती है। दोनों (यक्ष -राक्षस) ही आसुरी सम्पति को प्राप्त है।

कामना आश्रित, तामस मनुष्य प्रेतों तथा भूतोंका पूजन करते हैं। जो मर गये हैं, उन्हें प्रेत कहते हैं और जो भूतयोनिमें चले गये हैं, उन्हें भूत कहते हैं। यह आसुरी सम्पति वाले अधम को प्राप्त है।

 

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