श्रीमद भगवद गीता : ०७

आहारस्त्वपि सर्वस्य त्रिविधो भवति प्रियः।

यज्ञस्तपस्तथा दानं तेषां भेदमिमं श्रृणु ।। १७-०७।।

 

 

आहार भी सबको तीन प्रकारका प्रिय होता है और वैसे ही यज्ञ, दान और तप भी गुणों के आधार पर तीन प्रकार की रुचि के होती है, उनके भेद को तुम मुझसे सुनो। ।। १७-०७।।

 

भावार्थ:

अध्याय १७ श्लोक ४ में भगवान श्री कृष्ण ने तीनो गुणों के प्रभाव में मनुष्य किस प्रकार के देवता का पूजन करता है इसका वर्णन किया है। अब इस श्लोक में गुणों का प्रभाव मनुष्य पर आहार, यज्ञ, दान और तप को लेकर किस प्रकार का होता है, इस का वर्णन है।

यज्ञ पद का अर्थ केवल अग्नि होत्र हवन, पूजन से नहीं है। अपितु यज्ञ पद में मनुष्य के सभी कार्य आ जाते है जो वह जीवन काल में करता है।

 

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