श्रीमद भगवद गीता : १९

मूढग्राहेणात्मनो यत्पीडया क्रियते तपः।

परस्योत्सादनार्थं वा तत्तामसमुदाहृतम् ।।१७-१९।।

 

 

जो तप मूढ़ता पूर्वक हठसे अपनेको पीड़ा देकर अथवा दूसरोंको कष्ट देनेके लिये किया जाता है, वह तप तामस कहा गया है। ।।१७-१९।।

 

भावार्थ:

दूसरों को कष्ट देना, उनका अनिष्ट करना, इस उद्देश्य से जब मूढ़ मनुष्य अपने शरीर को कष्ट देता है, तब वह कष्ट तापस तप कहलाता है।

वे दूसरों को दुःख देने के लिये तप करते हैं। उनका भाव रहता है कि शक्ति प्राप्त करने के लिये तप (संयम आदि) करने में मुझे भले ही कष्ट सहना पड़े, पर दूसरों को नष्ट-भ्रष्ट तो करना ही है।

 

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