श्रीमद भगवद गीता : ०२

श्री भगवानुवाच

 मय्यावेश्य मनो ये मां नित्ययुक्ता उपासते।

श्रद्धया परयोपेतास्ते मे युक्ततमा मताः ।।१२-२।।

 

श्रीभगवान् ने कहा: मेरे में मन को लगाकर नित्य-निरन्तर मेरे में लगे हुए जो भक्त परम श्रद्धा से युक्त होकर मेरी उपासना करते हैं, वे मेरे मत में सर्वश्रेष्ठ योगी हैं। ।।१२-२।।

 

भावार्थ:

सर्वश्रेष्ठ योगी के क्या गुण होते है, इसका वर्णन अध्याय ६ श्लोक ४७ में हुआ है।

परन्तु पूर्व श्लोक में अर्जुन प्रश्न करते है कि साधक योग युक्त किस प्रकार का साधक होता है – वह जो सकार रूप की उपासना करता है या वह जो अव्यक्त परमात्मतत्व की उपासना करता है।

इसके उत्तर में भगवान श्रीकृष्ण, योग से युक्त कौन है, इसका वर्णन पुनः इस श्लोक में करते है। योग युक्त साधक किस प्रकार की साधना करने से परमात्मा को प्राप्त होते है, इसका वर्णन अगले दो श्लोक में करते है।

सर्वश्रेष्ठ योगी कौन हैं? 

  1. जिस साधक के मन में नित्य-निरन्तर केवल परमात्मा का चिन्तन होता है।
  2. जिस का अन्तःकरण समता से युक्त है। अर्थात जिस के अन्तःकरण में किसी प्रकार की विषमता नहीं है।
  3. जिस की बुद्धि में महत्ता केवल परमात्मा की है। अर्थात जिसकी बुद्धि ने स्वयं की अहंता का त्याग कर दिया है।
  4. जिस की बुद्धि में विवेक जागृत हो गया है कि शरीर, मन और बुद्धि के द्वारा होने वाले सभी कार्यों का कारण केवल परमात्मतत्व ही है।
  5. और जो केवल समाज हित एवं कल्याण के लिये ही सारे कार्य करता हो।

 

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