श्रीमद भगवद गीता : १०

अभ्यासेऽप्यसमर्थोऽसि मत्कर्मपरमो भव।

मदर्थमपि कर्माणि कुर्वन् सिद्धिमवाप्स्यसि ।।१२-१०।।

 

 

यदि तुम अभ्यास करने में असमर्थ हो तो, तुम सभी कर्मों को मुझे अर्पण और मेरे परायण होकर करो। मेरे लिये कर्मोंको करते हुए भी तुम सिद्धि को प्राप्त करोगे। ।।१२-१०।।

 

भावार्थ:

भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को कहते है कि अगर तुम मन और बुद्धि को स्थिर करने के लिये अभ्यास करने में असमर्थ हो तो, तुम सभी कार्य परमात्मा के लिये करो।

यहाँ “अभ्यास करने में असमर्थ हो” का अर्थ है कि अगर तुमको लगता है कि अभ्यास करने में समय अधिक लगेगा।

तुम सभी कार्यों को परमात्मा को अर्पण और परमात्मा के परायण करने का अर्थ है :-

तुम मन, वाणी, और शरीर से होने वाले सभी कार्य परमात्मा को समर्पित करो। परमात्मा को समर्पित होने का अर्थ है, समाज के लिये करना, न की स्वयं की कामना पूर्ति के लिये। साथ ही तुम सभी कार्यों का कारण परमात्मा है, ऐसा निश्चित भाव रखो।

ऐसा करने से मन और बुद्धि स्वतः ही स्थिर हो जायेगी।

 

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