श्रीमद भगवद गीता : २०

ये तु धर्म्यामृतमिदं यथोक्तं पर्युपासते।

श्रद्दधाना मत्परमा भक्तास्तेऽतीव मे प्रियाः ।।१२-२०।।

 

 

जो भक्त श्रद्धावान् तथा मुझे ही परम लक्ष्य समझने वाले हैं और इस यथोक्त धर्ममय अमृत का अर्थात् धर्ममय जीवन का पालन करते हैं, वे मुझे अतिशय प्रिय हैं। ।।१२-२०।।

 

भावार्थ:

भगवान श्री कृष्ण ने मनुष्य धर्म का पालन करने को अमृत के समान बताया है। कारण की मनुष्य धर्म का पालन करने से साधक को परमानन्द की प्राप्ति होती है।

अतः जो साधक भगवान श्री कृष्ण के दुवारा कहे गये वचनों पर श्रद्धा रखता है और श्रद्धा भाव से अमृत रूपी मनुष्य धर्म का सेवन (पालन) करता है, वह भगवान श्री कृष्ण का अत्यन्त प्रिय भक्त है।

 

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