भावार्थ:
पकने के लिये जिन को पूरा समय प्राप्त नहीं हुआ हो या उचित समय से ज्यादा पके हुए। ऋतु चली जाने पर फ्रिज आदि की सहायता से रखे हुए फल-सब्जी। धूप आदिसे जिनका स्वाभाविक रस सूख गया है अथवा मशीन आदिसे जिनका सार खींच लिया गया है। सड़नसे पैदा की गयी मदिरा और स्वाभाविक दुर्गन्धवाले प्याज, लहसुन आदि। मांस, मछली, अंडा आदि। यह सब तामसिक आहार है।
पुनः यह बात विचार करने की है कि मनुष्य को स्वयं से राजसिक एवं तामसिक आहार का त्याग करना चाहिये। परन्तु जब मनुष्य भोजन के लिये अन्यों पर आश्रित है और आहार ग्रहण करना जीवन निर्वह के लिये अनिवार्य है, तब जो और जैसा प्राप्त हो जाय उसको भगवान का प्रशाद मान कर प्रेम भाव से ग्रहण कर लेना चाहिये। उसमें दुवेश करने से शरीर से आसक्ति और बन्धन हो जायगा।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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