भावार्थ:
तामसिक मनुष्य कर्तव्यों का पालन तो करता ही नहीं। जो कार्य करता भी है, वह शास्त्र विधि से रहित होते है। जो दान दिया जाता है, उसमें जीवन की मुलभुत आवश्यकताय नहीं होती। जो वस्तु उसके भोग के लिये नहीं रहती उनको वह दान करता है।
कर्मकाण्ड के अनुष्ठान में मन्त्रों का उच्चारण तथा शिक्षित पुरोहितों को दक्षिणा देना आवश्यक होता है, परन्तु तमोगुणी पुरुष इन सब नियमों की ओर ध्यान ही नहीं देता है।
इस श्लोक में जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं को अन्न शब्द के द्वारा व्यक्त किया गया है।
जैसा अध्याय १६ श्लोक २३ और अध्याय १७ श्लोक २८ में वर्णन किया गया है कि तामसिक कार्यों का फल नाशवान होता है। उससे न तो अन्तःकरण की शुद्धिरूप प्राप्त होती है, न सुख मिलता है और न ही परमात्मा की प्राप्ति होती है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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