भावार्थ:
वक्ता द्वारा प्रयुक्त शब्द ऐसे होते है, जो श्रोता के मन में वर्तमानमें और भविष्यमें उद्वेग विक्षेप और हलचल उत्पन्न न करें।
पारमार्थिक उन्नतिमें सहायक गीता, रामायण, भागवत आदि ग्रन्थोंको स्वयं उच्च स्वर में पढ़ कर सुनता है।
भगवान्की बार-बार स्तुति एवं प्रार्थना करता है।
यह सब वाणी के तप है।
वाणी स्वयं को अभिव्यक्त करने का एक सशक्त माध्यम है। इस वाणी के द्वारा वक्ता की बौद्धिक पात्रता, मानसिक शिष्टता एवं शारीरिक संयम प्रकट होते हैं। वाणी के सतत क्रियाशील रहने से मनुष्य की शक्ति का सर्वाधिक व्यय होता है। अत वाणी के संयम के द्वारा बहुत बड़ी मात्रा में शक्ति का संचय किया जा सकता है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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