श्रीमद भगवद गीता : १८

ब्राह्मण के लिये प्राणी व्यवहार काल में पृथक है, परन्तु अन्तःकरण में समभाव है।

 

विद्याविनयसंपन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि।

शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः ।।५.१८।। 

 

विद्या-विनययुक्त ब्राह्मण, पण्डित और चाण्डाल में तथा गाय, हाथी एवं कुत्ते में भी समभाव रखते हैं। ||५-१८||

भावार्थ:

जिसका विवेक जागृत है और जो ब्रह्मा में ही रमण करता है उसको ब्राह्मण कहा गया है। ब्राह्मण विद्वान् और विनम्र स्वभाव वाला होता है।

ब्राह्मण विद्वान् होता है और वह जानता है कि समाजिक कार्य और जीवन निर्वाह के लिए कौन सा प्राणी किस कार्य के लिये उपयोगी है। वह जनता है कि पण्डित जीवन काल में देवी-देवता की पूजा-अर्चना में सहायक होता है। चाण्डाल का उपयोग जीवन उपरान्त देह संस्कार विधि करने में होता है। ब्राह्मण को ज्ञात होता है कि गाय दूध देती है। हाथी सवारी और बल वाले काम करने में सहायक होता है। कुत्ता घर की सुरक्षा करने में सहायक होता है।

ब्राह्मण विद्वान् के साथ विनम्र और समभाव वाला भी होता है। उसके अन्तःकरण में अलग-अलग प्रकार के प्राणीओं के प्रति राग-द्वेष, पक्षपात आदि नहीं होता। वह सभी प्राणीओं में एक परमात्मतत्व को देखता है और सब में समान आत्मीयता का भाव रखता है।

व्यवहार काल में तो वह अलग-अलग प्राणी को उनके भिन-भिन गुणों के अधार पर उनसे समाजिक कार्यों के लिये अलग-अलग प्रकार से व्यवहार करता है। परन्तु अन्तःकरण में उन सबके प्रति समान रूप से आत्मीयता का भाव होता है।

ब्राह्मण जानता है कि हिंसक पशु से अपनी सुरक्षा किस प्रकार करनी है और आक्रमण होने पर हिंसक पशु का वध भी करना है। परन्तु मन में वह हिंसक पशु के प्रति द्वेष और भय का भाव नहीं रखता।

PREVIOUS                                                                                                                                          NEXT

धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष

धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]

Read More

अध्याय