भावार्थ:
चेतन तत्व शरीर का प्रकाशक है और शरीर को चेतना प्रदान करने वाले तत्व को भगवान श्रीकृष्ण ने अध्याय १३ श्लोक १९ में पुरुष कहा है। क्युकि चेतना युक्त शरीर को भी पुरुष कहा जा सकता है। इसलिये भगवान श्रीकृष्ण इस श्लोक में परुष को दो भाग में विभाजित करते हुए शरीर को ‘क्षर’ पद देते है और चेतन तत्व को ‘अक्षर’ पद देते है।
अध्याय १३ में जिस २४ तत्वों वाला शरीर को क्षेत्र पद दिया है, उसको इस श्लोक में क्षर पद दिया है। कारण की यह शरीर नाशवान् है। अध्याय १३ में चेतन तत्व को क्षेत्रज्ञ पद दिया है, उसको इस श्लोक में अक्षर पद दिया है। कारण की यह चेतन तत्व शरीर अविनाशी है।
संसार में जितने भी प्राणी है उनके क्षर नाशवान् है। परन्तु अक्षर अविनाशी होने के साथ विकार रहित है। इस श्लोक में अक्षर की तुलना कूटस्थ से की है।
कूट का अर्थ है निहाई। जिसके ऊपर स्वर्ण को रखकर एक स्वर्णकार नवीन आकार प्रदान करता है। इस प्रक्रिया में स्वर्ण तो परिवर्तित होता है, परन्तु निहाई अविकारी ही रहती है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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