श्रीमद भगवद गीता : १०

तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम्।

ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते ।।१०-१०।।

 

 

उन नित्य-निरन्तर मेरे में लगे हुए और प्रेमपूर्वक मेरा भजन करने वाले भक्तों को मैं वह बुद्धि योग देता हूँ, जिससे उनको मेरी प्राप्ति हो जाती है। ।।१०-१०।।

 

भावार्थ:

पूर्व श्लोक में कहे गये भावों से युक्त साधक जब नित्य निरन्तर प्रेम पूर्वक मनुष्य धर्म का पालन करता है, तब उसकी बुद्धि योग में स्थिर हो जाती है और उसको समता की प्राप्ति होती है। समता की प्राप्ति ही परमात्मा को प्राप्त करना है।

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