भावार्थ:
इस श्लोक में जानना का अर्थ अनुभव करने से है। परमात्मतत्व का अनुभव तब होता है जब विषमता रूपी सारे भाव समाप्त हो जाते है और अन्तःकरण में केवल समता का भाव रहे जाता है।
समता में स्थित होने के लिये पहले परमात्मतत्व को अजन्मा, अनादि और ईश्वर के रूप में मानना होता है और ऐसा मानते हुये विषमताओं का त्याग करना होता है। विषमताओं का त्याग होने पर जो माना है वह जानने में परिवर्तित हो जाता है।
योग में स्थित रह कर कार्य करने से साधक के सम्पूर्ण पापोंसे मुक्त हो जाता है। योग में स्थित होने का अर्थ है, अहंता-ममता का त्याग, समता की प्राप्ति एवं चिन्तन केवल परमात्मा का।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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