भावार्थ:
जिस साधक में इन्द्रियों के विषयों के प्रति राग-दुवेश समाप्त हो गये है। मन की सारी कामनायें समाप्त हो गयी है और चिंतन केवल परमात्मा के प्राप्ति रह गया है वह परमात्मा में चित वाला है।
जो साधक का जीवन, जीने की चाहा केवल परमात्मा के लिये है। जिसने ममता का त्याग कर दिया है। शरीर से होने वाली सभी क्रियाएँ केवल सेवा के लिये है, उस साधक के प्राण अपने परमात्मा को अर्पण है।
परस्पर दो मनुष्य एक-दूसरे में केवल परमात्मा को देखते है। उनमें किसी प्रकार का राग-दुवेश अथवा अहंता का भाव नहीं रहता। उन के बीच का व्यवहार, अदान-प्रदान केवल देने वाला, सेवा भाव का होता है और इस प्रकार जो, जितना प्राप्त है उससे सन्तुष्ट होते हैं और भाव रूप में केवल प्रेम का भाव रहता है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
Read MoreTo give feedback write to info@standupbharat.in
Copyright © standupbharat 2024 | Copyright © Bhagavad Geeta – Jan Kalyan Stotr 2024