भावार्थ:
प्रकृति में जितने प्रकार के, और एक प्रकार के जितने भी, प्राणी, पदार्थ देखे जाते, उन सब का जो मूल तत्व है, वह सब (प्राणी, पदार्थ) में सामान रूप से व्याप्त परमात्मतत्त्व ही है। उन प्राणियों में जो अनेक प्रकार की क्रिया होती देखाई देती है; नेत्र, मुख, हाथ, पैर से प्राणियों द्वारा अनेक प्रकार क्रिया होती जान पड़ती है, उन सबका कारण रूप केवल परमात्मतत्त्व ही है।
परन्तु प्राणी-पदार्थ के होने का और उनमे होने वाली क्रिया का कर्ता परमात्मतत्त्व नहीं है। प्राणी-पदार्थ के होने के कारण उनके गुण है जो प्रकृति से प्राप्त है।
मनुष्य को यह सब (प्राणी, प्राणी के अंग) अलग-अलग जान पड़ते है, और उन अलग-अलग से सम्बन्ध मान कर अलग-अलग भाव उत्पन्न करता है। परन्तु मूल में इन सब का कारण एक परमात्मतत्त्व है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
Read MoreTo give feedback write to info@standupbharat.in
Copyright © standupbharat 2024 | Copyright © Bhagavad Geeta – Jan Kalyan Stotr 2024