श्रीमद भगवद गीता : १४

सर्वेन्द्रियगुणाभासं सर्वेन्द्रियविवर्जितम्।

असक्तं सर्वभृच्चैव निर्गुणं गुणभोक्तृ च ।।१३-१४।।

 

वह समस्त इन्द्रियों के गुणो (कार्यों) के द्वारा प्रकाशित होने वाला, परन्तु (वस्तुत:) समस्त इन्द्रियों से रहित है; आसक्ति रहित तथा गुण रहित होते हुए भी सबको धारणपोषण करने वाला और गुणों का भोक्ता है। ।।१३-१४।।

 

भावार्थ:

प्रश्न यह उठता है कि इन्द्रियों के जो गुण है, जो कार्य होते है, वह गुण और सामर्थ्य कहा से प्राप्त होता है? उन को कोन प्रकाशित करता है? उन सबको परमात्मा प्रकाशित करता है, परन्तु परमात्मा, इन्द्रियों के कार्यों के कर्ता से रहित है।

मनुष्य शरीर जो कुछ भी ग्रहण करता है, कार्य करता है, वह सब शरीर के विभिन्न प्रकार के गुणों के कारण है और उन गुणों को प्रकाशित करने वाला परमात्मा है। इस बात से यह जान पड़ता है कि फिर कर्ता परमात्मा है।

परन्तु भगवान श्रीकृष्ण स्पष्ट करते हैं कि परमात्मा कारण तो है परन्तु उस कारण का कर्ता नहीं है। हो रहे कार्यों से सम्बन्ध (आसक्ति) नहीं है।  और क्योंकि कर्ता नहीं है,  इसलिए कोई कर्ता वाले गुण भी नहीं है।

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