भावार्थ:
इन्द्रियों के विषय जैसे, जिस प्रकार के जानने मे आते है उन सब मे परमात्मतत्त्व व्याप्त है। इन्द्रियों के विषय के होने का जो कारण है – गुण है, उस कारण-गुण में भी परमात्मतत्त्व व्याप्त है। यह प्राणियों के बाहर-भीतर परिपूर्ण होने का तत्पर्य है। चर-अचर प्राणियों में भी परमात्मतत्त्व व्याप्त है।
दूर-नजदीक का तत्पर्य- जहा प्राणी-पदार्थ नहीं है (अकाश, वायुमंडल,अंतरिक्ष) उस रिक्त स्थान मे भी परमात्मतत्त्व व्याप्त है। भूत-वर्तमान-भविष्य, हर काल में परमात्मतत्त्व व्याप्त है।
अंततः परमात्मतत्त्व, पदार्थ के सूक्ष्म तत्व अणु से भी सूक्ष्म तत्व है। पदार्थ का जो सूक्ष्म तत्व अणु है, उस अणु के गुण को पदार्थ के गुण के साथ जोड़ा जा सकता है। पदार्थ के अणु से पदार्थों में भेद किया जा सकता है। परन्तु सभी पदार्थों के अणु का भी जो मूल-सूक्ष्म परमात्मतत्त्व है, वह सब पदार्थों में समान गुण वाला है। परमात्मतत्त्व से पदार्थों में भेद नहीं किया जा सकता। परमात्मतत्त्व का सब में एक ही गुण होने के कारण उसका स्वयं का कोई गुण नहीं है, और उसमें क्रिया नहीं है। अणु में क्रिया है परन्तु परमात्मतत्त्व में नहीं। गुण रहित ही परमात्मतत्त्व का गुण है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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