भावार्थ:
जैसा पूर्व श्लोक में कहा है, परमात्मतत्त्व समस्त सृष्टि का मूल तत्व होने के कारण, और उसका और अधिक विभाजन न हो सकने के कारण वह विभागरहित है। परन्तु साथ ही सभी अलग-अलग पदार्थ-प्राणी का मूल तत्व होने के कारण वह अलग-अलग पदार्थ-प्राणी मे विभक्त हुआ स्थित भी है।
सृष्टि मे सम्पूर्ण प्राणियों की उत्त्पति है, उनमें क्रिया है और फिर उनका विनाश है। यह चक्र प्रकृति-प्राणियों के गुणों से है और उन गुणों का तत्व/कारण परमात्मतत्त्व है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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